Wednesday, November 13, 2024

अंतरात्मा और अहंकार


अंतरात्मा और अहंकार


राजीव 'रंजन'

07/04/2023


आत्मा और शरीर से उत्पन्न  मानव की  विविध  गतियां

एक में  शुद्ध, शाश्वत, सत्य, सद्गुणों  से उत्पन्न वृत्तियां 

दूसरे में  शरीर, संसार, समय के अनुरुप मानव कृत्तियां


अंतरात्मा की  दबी पुकार

अहंकार का बढ़ता हुंकार 


अंदर से उपजी आवाज  सिर्फ स्वयं  को  ही  सुनाई  देती

हमेशा सही ग़लत, अच्छा  बुरा  के  मापदंड   पर  तौलती

सुने न सुने, पर अहसास दिलाती, मन को नित्य कचोटती


अंतरात्मा कभी न शांत

अहंकार हमेशा मधांन्ध


आत्मा, प्रकृति प्रदत्त वह  चेतना, जो  ब्रह्मांड से  है जुड़ी 

भौतिक शरीर, उस चेतना का स्थूल रुप और मुख्य कड़ी 

अंतरात्मा की दबी आवाज, मार्ग  दर्शक सी  सदैव खड़ी


अंतरात्मा सही  ग़लत  का  मापदण्ड

अहंकार शक्ति और प्रतिष्ठा का घमंण्ड


अहंकार जग, काल, व्यक्तित्व  की  पहचान  बन  उफनती

नैतिक अनैतिक को रौंद, स्वार्थ सिद्धि हेतु अक्सर पनपती

अहंकार आग्नेय बन सर्वस्व स्वाहा करने की क्षमता रखती


अंतरात्मा जैसे  राम की

अहंकार जैसे रावण का


'अंतरात्मा क्या है?' यह  सारगर्भित  प्रश्न  हमे  करता विचलित 

'अहंकार क्यूं है?' यह  सब के व्यक्तित्व  में रहता सम्मिलित

दोनों  मनुष्य  के विकास  और मान्यताओं  से रहते  उद्धृत 


अंतरात्मा का  प्रवाह अविरल

अहंकार जैसे क्षणिक हलचल






Saturday, November 9, 2024

आस - हिन्दी कविता राजीव 'रंजन'

आस

एक   आस   मन   में  जगा   कर
एक   सोच   मन   में   बैठा   कर 

विश्वास    स्वयं    में    बढ़ा    कर 
भविष्य   कल्पना  से   सजा  कर

धर  नित्य   कदम   कुछ पथ  पर
बढ़   चला  मैं   अपने  लक्ष्य   पर

कष्ट  अनेकानेक   भी    सह  कर 
डटा  रहा  हर  हाल  में  जम  कर 

स्नैह   स्नैह   पथ     हुआ  प्रशस्थ
रास्ता  भी  कटता   दीखा  समस्त

पथ के कष्ट  भी अब  हुए आसान
सब संभव है अगर लें  मन में ठान

राजीव 'रंजन'
04 दिसम्बर 2022

मेरे जूते - हिन्दी कविता राजीव 'रंजन'

मेरे जूते
राजीव "रंजन"

मेरे जूते, जब भी रहते, रहते हैं साथ
पांव में भी ये हमेशा होते साथ साथ
मेरे पांवों को बखूबी हर पल बचाते
तत्परता से हर रस्ते के कष्टों को सह जाते
रोड़े हों, कांटें हों, उभढ़ खाभड़ हो
सीधे टेढ़े, आढ़े तिरझे रस्तों पर 
मेरे पांवों को कभी भी आंच न आने देते
हर पल मेरे जूते रहते मेरे साथ निस्वार्थ
घर आ, पांव से निकाल, मैं रख देता कोने में
करते वो इन्तज़ार मेरा निरंतर
एक दिन गौर से देखा उन्हेंं उठा दोनों हाथ
कील चुभी थे, कंकड़ गडा़ था, सोल घिसा था
वाह रे मेरे प्यारे जूतों, सब सहा, पर उफ न किया
लगा जैसे कह रहे हों, "हम तो तुम्हारे लिए ही बने हैं,
यह काम है हमारा, प्यार करते हैं तुमसे!
और प्यार में, हम सिर्फ दे ही सकते हैं 
यही छोटी सी कहानी है हमारी।"
सोच में पड़ गया मैं!!!
क्या हम भी कहानी हैं किसी के जीवन की ? 
निश्च्छल प्यार बांटते, बिना उम्मीद, अगाध??!!
प्यार पाने की कल्पना हम सब की है
पर पाने और देने में यही तो फर्क है
देना अपने बस में है, और पाना औरों के। 

हमारे बाबा - बाबू रघुनाथ सिंह जी

हमारे बाबा - बाबू रघुनाथ सिंह जी

राजीव 'रंजन'


सुबह आजी तुलसी को पानी देतीं

बाबा नीम के दातुन तोड़ते

चाचा दालान खरहरते

चाची चुल्हा लीपतीं, नाश्ते की तैयारी करतीं

बाबा खेत की ओर निकल पड़ते

हाथ में लोटा और दातुन ले सारे खेत धूम आते

लौटते पोखरा पर दातुन कर कुल्ला करते

साथ ही नहां लेते

बाबा के आते ही सभी घाट छोड़ देते

बड़ों का आदर जो ठहरा

उनके जाते ही फिर बच्चों की धमा-चौकड़ी

गीले ही गावटी गमछा लपेट शिवाला पर जल चढ़ाते

रास्ते में सभी रास्ता छोड़ आदर से कगार हो जाते 

आजी को मालूम था लौट खराई तोड़ेंगे

गुड़ की भेली, पानी और कपड़े ले दरवाजे पर मिलतीं

चाचा चिलम चढ़ा लाते, आजी नास्ता लातीं

शिवमंगल दूबेजी, बाबा के परम मित्र, आ जाते

फिर तो ठहाकों के बीच दुनिया की सारी खबर होती

सरकार की शिकायत से नहर में पानी का आना होता

धीरे धीरे और लोग जुड़ते जाते, मजमा लग जाता

दोपहर तक हर खबर, हर चर्चा आम होती, जीवन होता

खाना खा बाबा आराम से सोते, उठाया तो वज्रपात

शाम फिर गुलजार, गवनई अक्सर होती या रामायण चर्चा

गोरख, मक्खन, जलील, अर्जुन सब दरी पर बैठे होते

बाबा को ढोलक और खंजड़ी बजाने का शौख था

कजरी, बिरहा, पुरबिया, बिदेशिया, चैता का समां होता

गांव में जब कोई नहीं पढ़ा था तो उन्हो ने बेटे को पढ़ाया

मान्यता थी कि, 'जो हाई स्कूल करता है अंधा हो जाता है'

बड़ी मुश्किलों से, सबके विरोधों के विपरीत कॉलेज भेजा

बाबूजी जब प्रशासनिक सेवा में आए तो बाबा जिद्द कर बैठे

"द्वार पर अब हमें हाथी बांधनी है", बाबूजी परेशान

इतना पैसा कहां से आएगा, नई नई नौकरी है

खाना पीना छोड़ घर से निकल पड़े, मनाने वाले पीछे पीछे

बनारस के घाट पर गांव के परिचित ने पहचाना

हार कर सोनपुर मेला से कर्जा गुलाम ले हाथी आयी

दस गांव उमड़ पड़ा हाथी दरवाजे पर देखने 

गांव से गुजरती हुई एक दिन हाथी ने गन्ना तोड़ लिया

बाबू साहब नाराज और लाठी से हाथी को दे मारा

हाथी डरकर भाग निकली, बाबा की इज्जत मिट्टी में

परम मित्र बोले "मलिकार नर होता तो ऐसा न होता" 

बाबा पुनः जिद्द में, अगले वर्ष सोनपुर मेला गए बदल लाए

फिर क्या मजाल कि कोई उसके पास भी फटक ले

बाबा बिरले ही हाथी पर चढ़ते, पर शान सातवें आसमान

हम लोग जब गांव जाते बलिया स्टेशन पर हाथी रहती

उनका हुक्म था उसी पर चढ़ कर गांव आना है

सामान पीछे पीछे रिक्शे पर कोई कारिंदा लाता

बाबा द्वार छोड़ कहीं न जाते, अकेले भी खंजड़ी बजाते

धोडे़ और हाथी के देशी इलाज में माहिर

दूर दूर से लोग आते इलाज और सलाह के लिए

दालान पर बहुत बड़ी चौकी बिस्तर समेत बिछी रहती 

साधूओं और रिश्तेदारों का हमेशा मजमा लग रहता

आजी भुनभुनाती, "सब ऐसे ही लुटा देंगे ये" 

"बाबू रघुनाथ सिंह का आक्समिक देहांत हो गया" 

औरंगाबाद, बिहार से हम जैसे तैसे गांव पहुंचे 

वो दालान, वो करीने से बिछी बिस्तर सूना‌ पड़ा था

इसे गुलजार करने वाला अब न रहा

हाथी भी थोड़े दिनों बाद बेच दी गई, उनके मित्र भी न रहे

वो चोकी, वो चिलम, वो दालान, वो हथिखाना वहीं हैं

पर वो रौनक कहां उस दालान की जो बाबा ने सजाई थी

निर्जीव नहीं, इन्सान जान फूंकते है चीजों में

और रह जाती हैं उनकी अमिट यादें, उनके फसानों में 

बाबूजी की चिठ्ठी - "तुम्हारी चिठ्ठी नहीं आई"

बाबूजी की चिठ्ठी
"तुम्हारी चिठ्ठी नहीं आई"

स्कूल के हाॅस्टल में रहता था 
बाबूजी हमेशा चिठ्ठी लिखते 
कम से कम सप्ताह में दो
मिलती क्लास खत्म होने के बाद
संबोधन, आशीष के बाद प्रश्न होता
'तुम्हारी चिठ्ठी नहीं आई? 
तुम ठीक तो हो? ध्यान रखना'
उनकी चिठ्ठी के साथ आती 
मेरी भी लिखी चिट्ठी, लाइन लगी
बकायदे सभी सुधार के साथ
सारी खबर होती, सब बयां होता
नसीहत होती, हिदायत होता
गांव घर की भी बातें होतीं
वर्षों बीते, युग बीता, चिठ्ठी बीती
व्यस्तता बढ़ती गई, परिवार भी बढ़ा
बाबूजी को अक्सर फोन कर लेता था
पर वो हमेशा चिठ्ठी लिखने पर जोर देते
मैं कहता, 'फोन तो है, बात हो ही जाती है'
पर वो कहते, 'तुम नहीं समझते'
फोन पर बात दस मिनट में खत्म
पर तुम्हारी चिट्ठियां बार बार पढ़ता हूं
हर बार लगता है, तुम सामने बैठे हो
मन में ही तुमसे जब चाहता हूं मिल लेता हूं 
लिखी मैंने चिट्ठियां समय निकालकर 
उनके जाने के बाद मिली वो सारी चिट्ठियां
बकायदे जगह जगह 'अण्डरलाइन्ड'
आज जब अपने बच्चे चले गए
बाबूजी की बात समझ में आई
फोन और चिठ्ठी में क्या फर्क है
वहीं जो किताब और लेक्चर में हैं
दोनों तथ्यों भावनाओं से परिपूर्ण 
पर एक स्थाई दूसरा क्षणभंगुर 

राजीव 'रंजन'
फिलाडेल्फिया
09 अगस्त 2022

Thursday, November 7, 2024

Life

Life
Rajiv 'Ranjan' 

Life is an interesting journey indeed
We all have our own etched in our deed

No two journies will ever be the same
Each like the rythme has time line game

There is a starting line and one to finish 
Why compare ourselves and punish

Saunter on your life path at your own pace
Enjoy the journey with humility and grace

Discover your purpose that fuels each day
Small improvements daily lead the way

Focus and perceiverence and timely rest 
Achieves more and makes the journey best

Approach tasks with curiosity of
 a beginner 
Embrace imperfections and be a learner

Body is the temple that houses the soul 
Eat prudently and less should be our goal

Happiness is a state of mind that we create
Choose to be happy whatever be the state

Tuesday, August 20, 2024

उद्वेलित मन

उद्वेलित मन
राजीव 'रंजन'

विचारों की आंधियां उद्वेलित करती मन को
भावनाओं का बवंडर झकझोरता है तन को
कभी मन भटकता, स्मृतियों के गलियारों में
कभी खो जाता, सपनो के मोहक चौबारों में 
मन के अथाह सागर में उठते हर पल तूफान 
यादों के ज्वार-भाटे या फिर सपनो की उडांन
आंधियां कहां कभी किसी के बस में रहती हैं
बहती हैं, राहों से कई व्यवधान, संग ले उड़तीं हैं 
मन और आंधी को बस में करना है नहीं आसान
गीता में, अर्जुन ने प्रश्न किया, तो बोले भगवान
निश्चय ही कठिन है मन को वश में करना संजय
पर है नहीं असंभव, और नहीं इसमें कोई संशय
नित्य अभ्यास और वैराग से मिल सकता है समाधान
व्यक्ति के पास निर्णायक शक्ति, ऐसा प्राकृतिक प्रावधान 
किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु का अगर होंने न देंगे असर
अपनी सोच, और भावनाएं रखेंगे नियंत्रित और प्रखर
वर्तमान में रह, आज पर हो केद्रित विचार और व्यवहार
विवेक, प्रारब्ध, परिश्रम, और त्याग हो हमारा आचार
अपने अंदर छुपी अनंत शक्तियों पर हो भरोसा अटूट
तो मनुष्य जीवन का भरपूर आनंद ले सकता है लूट
सारी शक्तियां निहित हम सब में, नाहक हम रहते अशांत
भावना, सोच, और कर्म बदल लें , मन हो जाएगा शांत

नोएडा
16 मई 2024


अविरल

अविरल

राजीव 'रंजन' 


अविरल  जीवन  की  धारा

अनजान  हैं   इसकी   राहें

अनवरत  है   चलते  जाना

अनंत   की    फैली    बाहें 


अज्ञानता  खड़ी  मुंह  बाए

पथ  अंधकार  बनाने   को

है   बुद्धि    विवेक   सहारा

ज्योति  सर्वत्र  फैलाने   को 


यह काल  चक्र अविरल  है

अनंत से अनंत  तक  फैला

ब्रह्मांड   इसी   में    सिमटा 

रहता  है  राज  लिए  गहरा 


अविरल श्रृष्टि  के  हम  सब 

हैं क्षणिक काल की कृतियां

है   नश्वर,  सब    है    माया 

उस  कलाकार  की  वृत्तियां


क्षणभंगुर   है    यह   जीवन 

आशाओं में हर  पल  लिपटा

महत्वाकांक्षाएं   लिए  अनंत

है  अपने   आप   में   सिमटा 


सागर    की   अविरल   लहरें

ललचातीं क्षणिक  मिलन  को

कूलों    को   छू   भर   आतीं

जातीं    वो   लौट   मगन   हो 


लालिमा   क्षितिज   पर   छाई

थक   अस्त    हुआ   दिवाकर

फिर    प्रातः   पुनः   निकलना 

आशा   भर    जाता   प्रभाकर


जीवन   की   इस   बगिया   में 

उस   व्यक्ति  का   मिल  जाना

जो    स्नेह     करे     न्योछावर 

वसंत   का    ज्यों    है    आना 


है    मिलना    और    बिछड़ना

सिक्के   के    दो    बस    चेहरे

दिन    और     रात     हैं   जैसे

समय    के    राज    वो    गहरे


पाकर     वो      स्नेह     तुम्हारा 

भीगा     अंत:      मन        मेरा 

अघा      गया      हूं      तब   से 

मैं      चिर     कृतध्य    हूं    तेरा 









शिव शंकर

शिव शंकर

(राजीव 'रंजन')


हे  नीलेश्वर अलख  निरंजन   प्रतिपालक   शिव   शंकर   हे

नीलकंठ    नीलाद्री     निलोत्पल,    नागार्जुन   नागेश्वर    हे

त्रिलोकनाथ  त्रिगुणा ‌ त्रिदेव  त्रिपुरारी  त्रिनेत्र  त्रिकालेश्वर  हे

अनादि अनुपम अगम्य अव्यय अखिलेश ओम ओंकारेश्वर हे


तुम   अनंत   जग    पालनकर्ता    विश्वनाथ   सर्वेश्वर    हो

मां  गौरी  के  उमापति,  कार्तिक   गणेश  के  पिता  जो हो

"शि" से तुम अभयदानी करुणाकर  और पाप विनाशक हो

"व" में  है वह  शक्ति  निहित,  भक्तों  के  कष्ट  निवारक  हो


ब्रह्मा की उत्पत्ति   तुमसे  ,  सृष्टि  के   हो   तुम  सृजन  हार 

विष्णु   तुम   हो, पालनकर्ता, विश्व के  हो तुम  परम आधार  

समुद्र  मंथन  से उदित   हुआ  मानव  के  पापों   का   गरल

कंठागत, विनाशक विष किया, हे नीलकंठ, सहज ही सरल 


त्रिनेत्र खुला, तोड़ा  जो  ध्यान तुम्हारा, कामदेव  भश्म  हुए

महाकाल  विकराल  का  तांडव नृत्य  फिर नटराज ने किए

ध्वस्त हो रही  थी  सृष्टि, जब  देवी  मां ने तुम्हें शान्त किया

मां शक्ति के आग्रह पर, कैलाश से आ काशी में वास किया


हे शिव शंकर, शिव लिंग है द्योतक सृष्टि के सृजन शक्ति का

ध्यानमग्न रहते तुम निरंत र समपुर्ण भक्ति से उस शक्ति का 

नमन  हमारा, हे  यजामह, कल्याण   मार्ग पर  मैं चल पाऊं

पा  प्रसाद  तुम्हारा   हे  प्रभु! अखंड  ज्योति  में  समा  जाउं

Thursday, August 8, 2024

दुआ



दुआ

समंदर में मिलने  की   आस  लिए  बैठा  हूं
दरिया बन, बहने का अहसास  लिए बैठा हूं
मिल   समंदर  में, कहां   वजूद   रह  पाएगा
जब तक हूं, जीने  की  प्यास  लिए  बैठा  हूं 

शहर की  खामोशी  में  कई राज़  छुपे बैठे हैं
गरीबों  के  आंसू  और अल्फाज़  छुपे  बैठे हैं 
अमीरों ने रसूक से अपनी भर  रखी  है झोली
इख्तियार हर तरफ दबी आवाज में छुपे बैठै हैं 

मसीहा आएगा ये पता सबको जाने कब  से है 
छंटेंगे ये गम के बादल, ये हवा जाने कब  से है
रहम करो अब तो आ जाओ दुनिया के मालिक
निजात दो हमें दुखों से, ये दुआ जाने कब से है 

राजीव "रंजन"
8 अगस्त 2021

Thursday, August 1, 2024

अभिलाषा

अभिलाषा
(राजीव "रंजन")

बचपन में अभिलाषा थी चांद तारे छूने की
मन में भरी उत्सुकता थी नभ में विचरने की
आदर्शों का अंबार लिए, मन का लिए विश्वास
निकल पड़े जीवन पथ पर मन में लिए हम आस

सच्चाइयों से जब हुआ सामना, माथा गया घूम
व्यवस्थाओं की पकड़ देखी, गरीबों का हुजूम
नेताओं के वादे देखे, अफसरों की देखी अकड़
व्यापारियों की लालच देखी, पैसों की देखी पकड़

सड़कों पर बचपन देखा,   मांगते चौराहों पर भीख
औरतों की बेकद्री देखी,  समाज की खोखली सीख
धर्मो का प्रवचन देखा, बाबाओं का बढ़़ता वर्चस्व
त्यौहारों का बाजारीकरण देखा, पैसा हुआ सर्वस्व 

शिक्षा की तो बात न पूछो, व्यवस्था का हुआ सर्वनाश
परीक्षाओं में सामुहिक चोरी देखी, होते हुए देखा नाश
बेपढ़े लिखे पीएचडी धारी देखे, चोरी कर किया रिसर्च
बाज़ारों में बिकती डिग्रीयां देखी, खरीदते, कर पैसा खर्च

उत्सुकताएं अभिलाषाएं ले चले नयी राहों पर
कुछ बाधा थे कुछ कांटे थे कुछ थे अगर मगर
मन में लिए सुहाने सपने निकले अपने डगर 
बदलेंगे संसार, था, हौसला और था, लम्बा सफर

भारत का बदलता स्वरुप भी देखा प्रगति के नये आयाम
डाॅक्टर इन्जीनियर बनने का जुनून देखा, स्पर्धा का संग्राम 
दुर्व्यवस्था के बाद भी पिछड़े प्रदेशों से शिक्षा में होता नाम
देशी और विदेशी संस्थाओं में भारतीयों द्वारा उत्कृष्ट काम

एक हार के बाद, फौज का युद्धों में देखा लहराता परचम
अंतरिक्ष विज्ञान में विलक्षण प्रतिभा और बढ़ता दमखम
आईटी में अद्वितीय विकास और विश्व में स्थापित स्थान
मोबाइल का विस्तार, गरीबों का बना आधार, बढ़ता ज्ञान

वैज्ञानिक, तकनीकी शिक्षा, व रीसर्चों का बढ़ता वर्चस्व
आईआईटी और आईआईएमों का विश्व में फैलता यशस्व
भारत के व्यापारियों ने भी चुनोतियों का लिया लगाम थाम
प्रतिस्पर्धा में पीछे न रहे, गुणवत्ता में छुए नये नये आयाम

उत्कट है अभिलाषा मेरे भारत की हो प्रगति अजस्र अनल्प
विश्व में स्थापित हो पारंपरिक स्थान सम्मान पुन: इस कल्प
खुशहाल और समृद्ध हों भारत के लोग, बढ़े ज्ञान विज्ञान
वसुधैव कुटुम्बकम हो चरितार्थ, सत्य अहिंसा का हो सम्मान
















हमारे राम

हमारे राम
(राजीव 'रंजन')

मन के मेरे अंतस्तल में, हे राम! हमारे बसते हो
मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा में, बांध हमे जो रखते हो
होश संभाला जब से है, हर समय तुम्हारा नाम सुना
रामायण की कथाओं ने भावनाओं का सुंदर जाल बुना

हे मर्यादा पुरुषोत्तम! तुम हो हम सबके आदर्श पुरुष
भावना विवेक के सम्मिश्रण का मूर्तरुप आकार सदृश
धर्म परायण शांन्त रुप, दृढ़प्रतिज्ञ समग्र ज्ञानी स्वरुप
करुणा के सागर दयानिधान, भक्त वत्सल समदर्शी भूप

भारत के नैतिक मूल्यों का हो तुम केन्द्र सुदृढ़ और अचल
जीवन तुम्हारा, स्वयं रहा चुनौतीयों से भरा अविरल
राज्याभिषेक की थाल सजी, पाया वनवासी का वस्त्र धवल
इच्छा मां की आदेश पिता का, धरे मन में निकले राह नवल

जंगल था दुर्गम, कोमल सुकुमारी सीता और लक्ष्मण साथ 
विषम परिस्थितियों में भी भार्या और भाई ने छोड़ा न हाथ
स्नेह की हो मूर्ति, अश्रुपूरित नेत्रों से हुआ राम भरत मिलाप
केवट ने पांव धो, सबरी ने झूठे बेर खिला मिटाया संताप

प्रासादों में रहने वाले जंगल का सहर्ष सुख दुख झेल रहे थे 
 विपदा आयी, रावण ने छला, भाई जब आखेट खेल रहे थे
मां सीता का हरण हुआ, विह्वल खोजते फिरते डगर डगर 
घायल वृद्ध जटायू ने बताया, रावण ले गया उन्हें किस नगर

मित्रों के हो तुम मित्र प्रभू! सुग्रीव का तुमने उद्धार किया
ज्ञानी अज्ञानी बाली के अहंकार को कर चूर, संहार किया
आंखें खुलीं बाली की जब, पा क्षमा स्वर्ग सिधार गया
श्रापित पाषाण बनी अहल्या को भी छू तुमने तार दिया

सुग्रीव सेना प्रमुख,  हनुमान सलाहकार, थे अंगद दूत सबल
जामवंत, क्राथ, द्विविद, केसरी, मैन्ध, पनस यूथपति प्रबल
संपाति की दृष्टि, नल का ज्ञान, नील का कौशल पुल महान
औषधि कुशल वैद्य सुषेण, विभीषण मित्र तो कौन व्यवधान

लंका विजित हुई, रावण असम्मानित न हुआ, न लंका ध्वस्त
गुरु स्वरुप प्रतिस्थापित हुआ, लक्ष्मण ने पाई शिक्षा समस्त
सीता की अग्नि परीक्षा राम की थी राजनैतिक विवशता
लौट अयोध्या, सीता का वन जाना, थी राम की परवसता

राम हमारी सभ्यता के है कर्णधार, सुत्रधार और पूर्ण आधार
रोम रोम में बसते हैं, जनमानस के हैं आचार और विचार
बाह्य परिस्थितियां के विपरीत, मन से राम रहते समभावी
स्थितप्रज्ञ, क्रोध रहित, इन्द्रजीत, समदर्षी और  जगव्यापी




New York /न्यूयॉर्क

New York


New York  is  a  city  that  never  ever  sleeps 

Patience   and   fortitude   it    always   keeps 


Millions make it  their home  and earn a living

It integrates everyone and is always forgiving


It  has  something  for everyone  who  is here

Parks, museums, tours  on boats at the piers


Jobs,  businesses,  shows, exhibitions  galore

A crucible  for people  from all over and more


A  hope it  ignites, and  passions  burn bright

Creativity,  innovations,  experiments   excite


Many  a   dreams  are   made   and  ummade 

And    fortunes   won    and    lost    in    trade 


A  financial  capital  of  the world  it is called

International  institutions  have HQ sprawled 


It  is  a   fine   example  of   human  ingenuity 

Getting ahead with innovations in perpetuity 



न्यूयॉर्क 


ऊंची-ऊंची इमारतें, अट्टालिकाएं रात में जगमगातीं जैसे तारे

चोडी-चौड़ी सड़कें, पार्क, नदी का किनारा लगते कितने प्यारे 


न्यूयॉर्क की छटा है  कितनी  मनमोहक, अद्वितीय और  न्यारी

पहली नजर में रहते भौचक्के, सब लगती कितनी‌ प्यारी-प्यारी 


विश्व भर से आते लोग यहां घूमने, रहने और भाग्य आजमाने

आंखों  में  सपने  लिए  प्रगति की और अपना भविष्य  बनाने 


सभी  रहते  हर  वक्त  जल्दी  में  और दिखते  कितने मसगूल

तेज  कदमों  से करते  पार  सड़क, भीड़  के  बीच, जाते  दूर 


टाइम  स्क्वायर  की  बात  निराली, हर  ओर  है चमक दमक

खेल, तमाशा, बिल  बोर्ड, टूरगाइड और सैलानियों की चहक


सपनो का शहर, जिंदा हर पहर, समाए आकांक्षाओं की लहर

न जाने किन रस्तों से चल,  पहुंचा यहां, सहकर  कितने कहर 


Friday, May 31, 2024

खिलौने

खिलौने
राजीव 'रंजन'

बचपन में,  हम सब मचल उठते थे खिलौनो के लिए 
वो मिट्टी की छोटी रंग-बिरंगी गाड़ी
जब चलती, ढ़ोल बजता
वो तोते, जिनके लटक घुमाने पर, चोंच मारते
बड़े हुए, फुटबॉल और क्रिकेट ने स्थान लिया 
कंचों की तो बात न पूछो
ढेरों इकठ्ठा करते
तरह तरह के डिजाइन वाले
लट्टू, पतंग, मांझे, गिल्ली डंडा कितना भाते 
उम्र के साथ खिलौने बदलते गए 
मोबाईल अब नए खिलौने हैं
एक दूसरे को बस खूबियां गिनाते हैं
नए माॅडल के लाॅन्च होते ही मचल उठते हैं
अगर आईफोन हाथ में हो, और वो भी लेटेस्ट
तो फिर क्या बात, आप शेर हैं इस जंगल के
झलका लें उसका जितना चाहें
ऐंड्रॉयड वाले लाल पीले हुए जाते हैं
उसकी ढेरों खूबियां गिनाते हैं
और आईफोन की कमियां दर्शाते हैं
गाड़ी की तो बात ही मत पूछो
मेरी दादी कहतीं, "गाड़ी का मजा तब है"
"जब निकलें तो औरों की नजर उठ जाए" 
नौकरी वाले, रिटायर्ड , व्यापारी या नेता
सब अपनी गाड़ी झलकाते जरुर हैं
गाड़ियों में बकायदा जाति प्रथा है 
आउडी और फरारी वाले फर्र से निकल जाते हैं
खास हैं, आम की तरफ ताकते भी नहीं 
एक आध कुचल भी गए तो कोई बात नहीं
व्यवस्था उनकी है, कौन पूछेगा उनसे
थोड़ा शोर मचाकर सब चुप हो जाएंगे
कोर्ट कचहरी में वर्षों लग जाएंगे
काबिल वकील उन्हें बचा लाएंगे
सब पैसे और पावर  का खेल है
आज कल जिसे देखो घर को स्वर्ग बनाने में लगा है
आर्किटेक्ट, इन्जीनियर, डिजाइनर करतब दिखा रहे हैं
गेटेड़ कम्युनिटी, कल्ब हाउस, गार्ड, पार्क, जिम
गरीब को उसकी औकात दिखा रहे हैं??
और वे स्वर्ग के गेट पर ही रोके जा रहे हैं
गरीब हर तरफ - सड़कों पर, खेतों में, फैक्ट्रियों में 
उनके स्वर्ग की व्यवस्था बनाने में लगे हैं
अपने जीवन के जद्दोजहद में पिसते
लाचारी और परेशानियां से जूझते 
जीवन से अपना रिस्ता निभा रहे हैं
और हम अपने खिलोनों में मशगूल, बेखबर से
अपने अपने खिलोनों से खेले जा रहे हैं

Monday, May 20, 2024

इश्क - शादी के बाद

इश्क - शादी के बाद

क्या नाकाम इश्क ही, मुहब्बत की है मिसाल  
लोगों का है वो ख्वाब जो खुद है इक सवाल  
हदों को तोड़ ख़लिश सा अटका पड़ा दिलों में 
आरज़ू के पंख पसार है उलझा पड़ा रिवाजों में   

शीरी फरहाद, लैला मजनू, सोहनी महिवाल
हैं ये नाम, नाकाम इश्क के बेहतरीन मिसाल
क्यूं आम इंसान इश्क की मिसाल बन नहीं सकता
ज़िन्दगी से लड़ता प्यार का दामन थाम नहीं सकता

इश्क है चाहत, जो पनपता है, बढ़ता है धीरे-धीरे
अहसास बन छाता दिलों पर, उभरता है हौले-हौले
मीठी-मीठी बातों में छोटी-छोटी अदाओं में दिखता है 
भीनी मुस्कान में, हर पल की सदाओं में झलकता है 

जवां दिलों की धड़कन बन, उम्र के साथ आता है
प्यास जगाता हैं, चाहत बढ़ाता है, रोज तड़पाता है
चंचल मन, कहीं भटकता है, नयी चाह बन उभरता है
सपनों में लीन, सच से दूर, अनजान में अंटकता है

शादी-शुदा का भी तो इश्क है, उनके लिए बंदगी सा
रोजमर्रा के जद्दोजहद में भी करते हैं प्यार जिन्दगी
शादी है नहीं मकाम इस इश्क का, है यह आगाज
जिम्मेदारियों के बीच भी, प्यार का होता है परवाज

शादीशुदा का प्यार है फुलवारी जो मेहनत है मांगता
अपनापन की क्यारी, देखरेख और निगरानी है चाहता
सच्चाइयों की आग, जरुरतों की तपिश पर निखर
सोने की तरह, इश्क, जेवर सा ढल, बनता है प्रखर

बोली में मिश्री, आंखों में चाहत, दिल में बेकरारी
अटूट विश्वास, मन में आस, होंठों पे मुस्कान प्यारी
सुख में साथ, दुःख में बढ़ा, थामे मजबूती से हाथ
बीती बातें बिसार, प्यार की राह पर, रहता है साथ

दिखता जितना, शादीशुदा का इश्क, नहीं आसान उतना   
जो है जैसा,अपना, रोज़ प्यार जताना, है मुश्किल कितना
विश्वास के पाये, आदर की दीवार, स्नेह की छत चाहिए
प्यार के परिंदे को आशा के पंख,सपनो का आकाश चाहिए

इश्क के घरौंदे में साथ-साथ रहना, पास-पास नहीं होता
दिलों में खिंच, अनजान सी कसक का अहसास दे जाता 
आंखों से निकल, भीनी मुस्कान बन होंठों पे खिंचता है
जीवन में हर पल निखर, संवरता है, खुशियों में खिलता है

प्यार भरा दाम्पत्य, सुख के सपनो को साकार किए होगा 
सौहार्दपूर्ण माहौल बना, अभावों से परे, जीवन जिए होगा
जिम्मेदारियां बखूबी निभा, संतानों को सबक दिए होगा
भविष्य गढ़ा होगा, चाहत भरा होगा, स्नेह जिए होगा

राजीव सिंह
नोएडा
जनवरी २०२०









Tuesday, April 9, 2024

दोस्त

दोस्त
(राजीव 'रंजन')

दिल  के  सारे रिश्ते  ये, कहां समझ  में आते  हैं।
मन से मन की बातें हैं, दिल से  दिल को भाते हैं।। 

कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो दिल के करीब रहते हैं।
वर्षों के कुछ रिश्ते‌ हैं, जो बड़े नसीब  से बनते  हैं।।

खुलकर  इनमें  हंसते  हैं,  बातें  मन की  करते हैं।
अच्छे  हों या  बुरे  मगर,  कहां  विचारा  करते  हैं।।

बातों  में  कुछ  अल्हड़पन, मस्ती  और शरारत  है।
जीवन भर का साथ इनका,दोस्ती बड़ी नियामत है।।

जिंदादिली इन रिश्तों में, गर्मजोशी इन फरिश्तो में।
दोस्त  ही  इस  जीवन  में,  ले  जाते हैं बहिश्तों  में।। 

अर्थ 
(नियामत - ईश्वर का दिया हुआ वैभव, धन सम्पत्ति
बहिश्तों - जन्नतों, स्वर्ग, heaven)

Sunday, February 25, 2024

Golf Imitates Life by Rajiv "Ranjan"

Golf imitates life

Rajiv "Ranjan"

Golf  is  a   game   of    skill   that   imitates   life 
Both are full of surprises, challenges and strife

It  takes  years  to perfect a  really good swing
The  grip, the  stance and the  shot with a ring 

The  skills  of  life  too take  years  to  inculcate
Education and  knowledge to  wisely  replicate

Oft  shots go hay wire despite regular practice
Different hazards appear  much without notice 

We land sometimes in the  sand  and chip  our way  out
Puttings needs concentration to hole without doubt

Despite  best  efforts ball lands in pond or bush
Opportunity gets lost and we begin with a push

Brush  with  birds  and  snakes may just happen
Keep your eyes and ears always alert and open

We deal with all of them with patience and skill
A  perfect shot on the fairway gives much thrill 

Some  golf courses  have  even  seen crocodile
Wild animals  too may come  visiting for a while

Life too confronts such unexpected challenges 
We go about with equanimity and fine balances

Golf is a gentleman's game with courtesy on display
Count your scores honestly, and believe in fair play

It's not played for money but for fun in the lap of nature
Often some hustlers do, bringing down game's stature

It needs concentration of a yogi, focus of a crane
Tenacity of a crow, silence of a medicant in the brain

Game of golf and life we play against ourselves
Against  success  and failures  that mind delves

The purpose of life is to have a purpose that drives
Hole in one is the purpose that a golfer's strives 


Golf too depends upon the quality of your fine drives 
Only when we rise above ourselves society thrives





Wisdom

Wisdom


Oh  wisdom !  where  have   you  vanished

Our minds and emotions are so famished

Reasons  have   left   us  and  fled   yonder

Feelings for each other has a lot to ponder


Rich  get  richer  and  poor suffer  in  silence

Systems   celebrate   that  social  imbalance

One lives  aloof in  ivory  towers of opulance 

The other suffers in silence of comeuppence


Millions of children sleep on empty stomach

Live  in  squalor,  and  die  forever  out of  luck

Is  it  their  fault  that  they  were   born   poor?

Or is  it  society's perpetuated  misdemeanor?


The systems we create, are subverted by rich

Rules  they bend  and  twist; weave  and stitch

Greed drives  the  passion for more  and more

Riches  they  amass, beyond needs they store


When  shall  wisdom  dawn  upon  us  to feel

Problem  of   humanity  to   adopt   and   heal 

Realise  that  fate of  all  humans is the same 

Rules of  humanity  will  always  be the game


(Rajiv Singh, 22nd June 2020 at Noida)


Wisdom

Wisdom


Oh  wisdom !  where  have   you  vanished

Our minds and emotions are so famished

Reasons  have   left   us  and  fled   yonder

Feelings for each other has a lot to ponder


Rich  get  richer  and  poor suffer  in  silence

Systems  celebrate and exploit the social  imbalance

One lives  aloof in  ivory  towers of opulance 

The other suffers in silence of comeuppence


Millions of children sleep on empty stomach

Live  in  squalor,  and  die  forever  out of  luck

Is  it  their  fault  that  they  were   born   poor?

Or is  it  society's perpetuated  misdemeanor?


The systems we create, are subverted by rich

Rules  they bend  and  twist; weave  and stitch

Greed drives  the  passion for more  and more

Riches  they  amass, beyond needs they store


When  shall  wisdom  dawn  upon  us  to feel

Problem  of   humanity  to   adopt   and   heal 

Realise  that  fate of  all  humans is the same 

Rules of  humanity  will  always  be the game


(Rajiv Singh, 22nd June 2020 at Noida)


Saturday, January 20, 2024

एक रंग

एक रंग

एक   रंग   मैं   चला   ढूंढने
बाकी  सब  मैं   बिसर  गया
ढूंढा   जब   स्नेह   का   रंग
जीवन   सारा   निखर   गया

जीवन   की   आपाधापी  में
कांटे      चुभे      अनेकानेक
बैठे  रहते  अगर  दर्द   गिनते 
दर्द   का   ही  होता  अतिरेक

चिंताओं  से   किया   किनारा 
खुशियां  मिलीं   फिर   अनेक 
दुविधाएं  जो  रखते   मन   में 
खो     देते     अपना    विवेक 

प्रकृति   की  यह   सच्चाई  है
विचारों  से  ही  धुलता  है  रंग
मन  को  अगर  वश में कर लें
जीवन   न   हो   कभी  बदरंग

अर्जुन    ने   पूछा    गीता   में
मन  वश  में करना  है  कठिन
समझाया     कृष्ण    ने    तब
संभव है अभ्यास से निस दिन 

राजीव 'रंजन'
२० जनवरी २०२३