Thursday, August 8, 2024

दुआ



दुआ

समंदर में मिलने  की   आस  लिए  बैठा  हूं
दरिया बन, बहने का अहसास  लिए बैठा हूं
मिल   समंदर  में, कहां   वजूद   रह  पाएगा
जब तक हूं, जीने  की  प्यास  लिए  बैठा  हूं 

शहर की  खामोशी  में  कई राज़  छुपे बैठे हैं
गरीबों  के  आंसू  और अल्फाज़  छुपे  बैठे हैं 
अमीरों ने रसूक से अपनी भर  रखी  है झोली
इख्तियार हर तरफ दबी आवाज में छुपे बैठै हैं 

मसीहा आएगा ये पता सबको जाने कब  से है 
छंटेंगे ये गम के बादल, ये हवा जाने कब  से है
रहम करो अब तो आ जाओ दुनिया के मालिक
निजात दो हमें दुखों से, ये दुआ जाने कब से है 

राजीव "रंजन"
8 अगस्त 2021

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