Thursday, August 1, 2024

हमारे राम

हमारे राम

(राजीव 'रंजन')

मन के मेरे अंतस्तल में, हे राम! हमारे बसते हो

मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा में, बांध हमे जो रखते हो

होश संभाला जब से है, हर समय तुम्हारा नाम सुना

रामायण की कथाओं ने भावनाओं का सुंदर जाल बुना

हे मर्यादा पुरुषोत्तम! तुम हो हम सबके आदर्श पुरुष

भावना विवेक के सम्मिश्रण का मूर्तरुप आकार सदृश

धर्म परायण शांन्त रुप, दृढ़प्रतिज्ञ समग्र ज्ञानी स्वरुप

करुणा के सागर दयानिधान, भक्त वत्सल समदर्शी भूप

भारत के नैतिक मूल्यों का हो तुम केन्द्र सुदृढ़ और अचल

जीवन तुम्हारा, स्वयं रहा चुनौतीयों से भरा अविरल

राज्याभिषेक की थाल सजी, पाया वनवासी का वस्त्र धवल

इच्छा मां की आदेश पिता का, धरे मन में निकले राह नवल

जंगल था दुर्गम, कोमल सुकुमारी सीता और लक्ष्मण साथ 

विषम परिस्थितियों में भी भार्या और भाई ने छोड़ा न हाथ

स्नेह की हो मूर्ति, अश्रुपूरित नेत्रों से हुआ राम भरत मिलाप

केवट ने पांव धो, सबरी ने झूठे बेर खिला मिटाया संताप

प्रासादों में रहने वाले जंगल का सहर्ष सुख दुख झेल रहे थे 

 विपदा आयी, रावण ने छला, भाई जब आखेट खेल रहे थे

मां सीता का हरण हुआ, विह्वल खोजते फिरते डगर डगर 

घायल वृद्ध जटायू ने बताया, रावण ले गया उन्हें किस नगर

मित्रों के हो तुम मित्र प्रभू! सुग्रीव का तुमने उद्धार किया

ज्ञानी अज्ञानी बाली के अहंकार को कर चूर, संहार किया

आंखें खुलीं बाली की जब, पा क्षमा स्वर्ग सिधार गया

श्रापित पाषाण बनी अहल्या को भी छू तुमने तार दिया

सुग्रीव सेना प्रमुख, हनुमान सलाहकार, थे अंगद दूत सबल

जामवंत, क्राथ, द्विविद, केसरी, मैन्ध, पनस यूथपति प्रबल

संपाति की दृष्टि, नल का ज्ञान, नील का कौशल पुल महान

औषधि कुशल वैद्य सुषेण, विभीषण मित्र तो कौन व्यवधान

लंका विजित हुई, रावण असम्मानित न हुआ, न लंका ध्वस्त

गुरु स्वरुप प्रतिस्थापित हुआ, लक्ष्मण ने पाई शिक्षा समस्त

सीता की अग्नि परीक्षा राम की थी राजनैतिक विवशता

लौट अयोध्या, सीता का वन जाना, थी राम की परवसता

राम हमारी सभ्यता के है कर्णधार, सुत्रधार और पूर्ण आधार

रोम रोम में बसते हैं, जनमानस के हैं आचार और विचार

बाह्य परिस्थितियां के विपरीत, मन से राम रहते समभावी

स्थितप्रज्ञ, क्रोध रहित, इन्द्रजीत, समदर्षी और जगव्यापी

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