शिव शंकर
(राजीव 'रंजन')
हे नीलेश्वर अलख निरंजन प्रतिपालक शिव शंकर हे
नीलकंठ नीलाद्री निलोत्पल, नागार्जुन नागेश्वर हे
त्रिलोकनाथ त्रिगुणा त्रिदेव त्रिपुरारी त्रिनेत्र त्रिकालेश्वर हे
अनादि अनुपम अगम्य अव्यय अखिलेश ओम ओंकारेश्वर हे
तुम अनंत जग पालनकर्ता विश्वनाथ सर्वेश्वर हो
मां गौरी के उमापति, कार्तिक गणेश के पिता जो हो
"शि" से तुम अभयदानी करुणाकर और पाप विनाशक हो
"व" में है वह शक्ति निहित, भक्तों के कष्ट निवारक हो
ब्रह्मा की उत्पत्ति तुमसे , सृष्टि के हो तुम सृजन हार
विष्णु तुम हो, पालनकर्ता, विश्व के हो तुम परम आधार
समुद्र मंथन से उदित हुआ मानव के पापों का गरल
कंठागत, विनाशक विष किया, हे नीलकंठ, सहज ही सरल
त्रिनेत्र खुला, तोड़ा जो ध्यान तुम्हारा, कामदेव भश्म हुए
महाकाल विकराल का तांडव नृत्य फिर नटराज ने किए
ध्वस्त हो रही थी सृष्टि, जब देवी मां ने तुम्हें शान्त किया
मां शक्ति के आग्रह पर, कैलाश से आ काशी में वास किया
हे शिव शंकर, शिव लिंग है द्योतक सृष्टि के सृजन शक्ति का
ध्यानमग्न रहते तुम निरंत र समपुर्ण भक्ति से उस शक्ति का
नमन हमारा, हे यजामह, कल्याण मार्ग पर मैं चल पाऊं
पा प्रसाद तुम्हारा हे प्रभु! अखंड ज्योति में समा जाउं
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