अंतरात्मा और अहंकार
राजीव 'रंजन'
07/04/2023
आत्मा और शरीर से उत्पन्न मानव की विविध गतियां
एक में शुद्ध, शाश्वत, सत्य, सद्गुणों से उत्पन्न वृत्तियां
दूसरे में शरीर, संसार, समय के अनुरुप मानव कृत्तियां
अंतरात्मा की दबी पुकार
अहंकार का बढ़ता हुंकार
अंदर से उपजी आवाज सिर्फ स्वयं को ही सुनाई देती
हमेशा सही ग़लत, अच्छा बुरा के मापदंड पर तौलती
सुने न सुने, पर अहसास दिलाती, मन को नित्य कचोटती
अंतरात्मा कभी न शांत
अहंकार हमेशा मधांन्ध
आत्मा, प्रकृति प्रदत्त वह चेतना, जो ब्रह्मांड से है जुड़ी
भौतिक शरीर, उस चेतना का स्थूल रुप और मुख्य कड़ी
अंतरात्मा की दबी आवाज, मार्ग दर्शक सी सदैव खड़ी
अंतरात्मा सही ग़लत का मापदण्ड
अहंकार शक्ति और प्रतिष्ठा का घमंण्ड
अहंकार जग, काल, व्यक्तित्व की पहचान बन उफनती
नैतिक अनैतिक को रौंद, स्वार्थ सिद्धि हेतु अक्सर पनपती
अहंकार आग्नेय बन सर्वस्व स्वाहा करने की क्षमता रखती
अंतरात्मा जैसे राम की
अहंकार जैसे रावण का
'अंतरात्मा क्या है?' यह सारगर्भित प्रश्न हमे करता विचलित
'अहंकार क्यूं है?' यह सब के व्यक्तित्व में रहता सम्मिलित
दोनों मनुष्य के विकास और मान्यताओं से रहते उद्धृत
अंतरात्मा का प्रवाह अविरल
अहंकार जैसे क्षणिक हलचल
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