मेरे जूते
राजीव "रंजन"
मेरे जूते, जब भी रहते, रहते हैं साथ
पांव में भी ये हमेशा होते साथ साथ
मेरे पांवों को बखूबी हर पल बचाते
तत्परता से हर रस्ते के कष्टों को सह जाते
रोड़े हों, कांटें हों, उभढ़ खाभड़ हो
सीधे टेढ़े, आढ़े तिरझे रस्तों पर
मेरे पांवों को कभी भी आंच न आने देते
हर पल मेरे जूते रहते मेरे साथ निस्वार्थ
घर आ, पांव से निकाल, मैं रख देता कोने में
करते वो इन्तज़ार मेरा निरंतर
एक दिन गौर से देखा उन्हेंं उठा दोनों हाथ
कील चुभी थे, कंकड़ गडा़ था, सोल घिसा था
वाह रे मेरे प्यारे जूतों, सब सहा, पर उफ न किया
लगा जैसे कह रहे हों, "हम तो तुम्हारे लिए ही बने हैं,
यह काम है हमारा, प्यार करते हैं तुमसे!
और प्यार में, हम सिर्फ दे ही सकते हैं
यही छोटी सी कहानी है हमारी।"
सोच में पड़ गया मैं!!!
क्या हम भी कहानी हैं किसी के जीवन की ?
निश्च्छल प्यार बांटते, बिना उम्मीद, अगाध??!!
प्यार पाने की कल्पना हम सब की है
पर पाने और देने में यही तो फर्क है
देना अपने बस में है, और पाना औरों के।
No comments:
Post a Comment