बाबूजी की चिठ्ठी
"तुम्हारी चिठ्ठी नहीं आई"
स्कूल के हाॅस्टल में रहता था
बाबूजी हमेशा चिठ्ठी लिखते
कम से कम सप्ताह में दो
मिलती क्लास खत्म होने के बाद
संबोधन, आशीष के बाद प्रश्न होता
'तुम्हारी चिठ्ठी नहीं आई?
तुम ठीक तो हो? ध्यान रखना'
उनकी चिठ्ठी के साथ आती
मेरी भी लिखी चिट्ठी, लाइन लगी
बकायदे सभी सुधार के साथ
सारी खबर होती, सब बयां होता
नसीहत होती, हिदायत होता
गांव घर की भी बातें होतीं
वर्षों बीते, युग बीता, चिठ्ठी बीती
व्यस्तता बढ़ती गई, परिवार भी बढ़ा
बाबूजी को अक्सर फोन कर लेता था
पर वो हमेशा चिठ्ठी लिखने पर जोर देते
मैं कहता, 'फोन तो है, बात हो ही जाती है'
पर वो कहते, 'तुम नहीं समझते'
फोन पर बात दस मिनट में खत्म
पर तुम्हारी चिट्ठियां बार बार पढ़ता हूं
हर बार लगता है, तुम सामने बैठे हो
मन में ही तुमसे जब चाहता हूं मिल लेता हूं
लिखी मैंने चिट्ठियां समय निकालकर
उनके जाने के बाद मिली वो सारी चिट्ठियां
बकायदे जगह जगह 'अण्डरलाइन्ड'
आज जब अपने बच्चे चले गए
बाबूजी की बात समझ में आई
फोन और चिठ्ठी में क्या फर्क है
वहीं जो किताब और लेक्चर में हैं
दोनों तथ्यों भावनाओं से परिपूर्ण
पर एक स्थाई दूसरा क्षणभंगुर
राजीव 'रंजन'
फिलाडेल्फिया
09 अगस्त 2022
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