Monday, July 24, 2023

शॉपिंग - हिन्दी कविता राजीव 'रंजन'

शॉपिंग

राजीव 'रंजन'

आज   के  शॉपिंग   माॅल  लगते   हैं,   जैसे   हों  स्वर्ग 
हंसते   खिलखिलाते   चेहरे,  जैसे  तलाशते    अपवर्ग 

चमचमाते   बोर्ड,  सजी   दुकानें    मनमोहक   माहौल
भाते  सबको,  लुभाते  दिल  को, मन   को  जाते  तौल

दुकानों  में  धुसते  ही  मुस्कुराते   चेहरे   करते  स्वागत
हसरत  भरी  निगाहों  से  करते  पेश चीजें जैसे इबादत

हमेशा  लगता  शायद  कुछ  इससे  अच्छा  मिल   जाए
ढूंढ़ते  यहां  वहां, शायद अनजान  कहीं  नजर आ जाए

अक्सर बेमक़सद टहलते  इधर उधर  तलाशते अनजान
आंखों में भर मस्ती शौपिंग की  टहलते  बिना  व्यवधान

चलते  चलते अचानक  भूख  सी  होती  सबको  महसूस
फूड  कोर्ट  का  क्या  कहना, लगता  खाने पर  जाएं टूट

मल्टीप्लेक्स में नए पुराने फिल्मों की  सजी रहती सौगात
ऊंचीं ऊंचीं कीमतों पर टिकट और खाने की सजी बारात

सबको मौज मनाता देख, देश में होता न गरीबी का भान
मॉल की दुनिया जीवन सा ही झणभंगुर,यह ले हम जान 

चमक  दमक और  पैसों पर  नाचती यह  भ्रामक  दुनिया
कर्ज पर कल का जीवन आज ही जीना  सिखाती बढ़िया

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