Saturday, July 1, 2023

एक रंग - हिन्दी कविता राजीव "रंजन"

एक रंग

राजीव 'रंजन'
२० जनवरी २०२३, नोएडा 

एक   रंग   मैं   चला   ढूंढने
बाकी  सब  मैं  बिसर  गया
ढूंढा   जब   स्नेह   का   रंग
जीवन   सारा   निखर  गया

जीवन   की   आपाधापी  में
कांटे      चुभे      अनेकानेक
बैठे  रहते  अगर  दर्द   गिनते 
दर्द   का  ही  होता  अतिरेक

चिंताओं   से  किया  किनारा 
खुशियां  मिलीं   फिर  अनेक 
दुविधाएं   जो  धरते  मन   में 
खो     देते   अपना     विवेक 

प्रकृति   की  यह   सच्चाई  है
विचारों  से  ही  धुलता  है  रंग
मन  को  अगर  वश में कर लें
जीवन   न   हो   कभी  बदरंग

अर्जुन    ने   पूछा    गीता   में
मन  वश  में करना  है  कठिन
समझाया     कृष्ण    ने    तब
संभव है अभ्यास से निस दिन 




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