Wednesday, July 5, 2023

गांव के बरियात - भोजपुरी कविता राजीव 'रंजन'

गांव के बरियात 

अपना   गांवें   से   जाए   के   रहे   रीविलगंज    बरियात
बलिया   से   रीविलगंज   रेल   गाड़ी   से  सब   रहे  जात

पैदल,   साईकिल,   रेक्सा,   बस  से सभे गांव  से  चलल
स्टेशन   पर   दुपहरिया   ले  एका  एकी   लागल  चहुंपल

पियरी   धोती   आ   लाल   कुर्ता   में   पवनिओं   पहुंचले
झांपी   बर्तन  मउर   मिठाई   के   दौरा  ‌ लिहले   लउकले

भैया  पता   लागवलन,  गाड़ी   चलत    रहे  ८  घंटा   लेट
सभकर   मन  बुझाइल,   मामिला    कइसे    होखी    सेट

तलेले    एगो   सुपरफास्ट   गाड़ी    स्टेशन    पर    आइल
काका   कहलन   एही   में  हमनियों   के    जाव  अमाइल

गाड़ी  में  रहे  खूबे  धक्का मुक्की, ना जाने के  कैसे  ढुक्की
पंडी  जी  हांक  लगवलें,  देख  जन, अमा, ना  त  ट्रेन  छुटी

मचल   कोहराम, लागल   होखे  भागा  भागी   चारो  ओरी
केहू  हेने  चढ़ल  केहू  होने  चढ़ल  लेले आपन आपन झोरी

पवनिअन  के  कहां  चढ़ावल  जाव‌  ना  रहे  केहू के बुझात
झट देनी सभका के  छत पर  ठेलाइल की  जास  हवा खात

"ए  शिपरसन!!  अरे  चढ़   ना   काहे  बाड़  भकुआइल!!"
बाबा  हंकले, शिपरसन दौउड़ले,मौउर  रहे धइल, बिगाइल

शिपरसन   रहले   प्लेटफारम   पर   मुहकुरिए  ढिमिलाइल
भिनास  रहे   फाटल,  खून  रहे  गीरत,  रहले अकबकाइल

तलेले  गाड़ी  गइल  खुल, उतर  के   चाचा  कसहूं   चढ़वले
गाड़ी  रफ्तार  धइलस  त  देखल  गइल  दुल्हा  रहस  धवले

गाडी़  त  निकल   गइल   दुल्हा  पाछवें    हांफते  रह  गइले
बाबा लगले गरिआवे, केहू सारवा के दू तबड़ाक रहित मरले

खइनी  खाए  के  चक्कर  में  ससुरा दिहलस  ह गाड़ी  छोड़
अब  का  होखी  ए  दादा, दुल्हा  के   बाप  लगले  पीटे गोड़

हांफत  कांपत  दू   पहर  बीतल  राती  खा   दुल्हा  चंहुपले
साइकिल  से, बस   से, नाव  से गिरत  परत  कसहूं  अइले

अन्हारा  में  बरिआत   लागल,   उंधाइले   अइगा   मंगाइल
पत्तल  में  का गिरल  केहू  ना  जानल, जे मिलल से खाइल 

बरिआत आ जीनगी में  कबहूं कुछु हो सकेला अपना  गांवें
जुगुत लगावे के पड़ेला आगा जाए खातिर अपना अपनी पांवें

राजीव 'रंजन'
०४ फरवरी २३









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