Friday, July 7, 2023

सुबह की पहली चाय - हिन्दी कविता राजीव 'रंजन'

सुबह की पहली चाय
राजीव "रंजन"

नींद में अलसाये वो  गरम चाय  की  पहली  घूंट
सरकती गले से  जैसे अमृत  गागर गई  हो  फूट

तरोताजगी  की  लहर सी  दौड़ उठती  बदन  में 
अगली  बड़ी  चुस्की  लेता स्वाद हो  मगन   मैं

भर मस्ती घूंट घूंट में जैसे  रुह को सुकून दे जाती
सोये शरीर को नींद  से धीरे धीरे है  जगा  जाती

गर्म   चाय  और  अखबार  का मेल है लाजवाब
आनंद  और  क्या  है? खुद  ही  कहिए  जनाब

छोटी छोटी  खुशियों का  है यह  जीवन  समुचित
सिर्फ  बड़ी बड़ी  के पीछे  भागना  होगा अनुचित

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