Wednesday, September 13, 2023

तन्हाई - हिन्दी कविता राजीव 'रंजन'

तन्हाई
(राजीव 'रंजन'

तन्हाई भी  रानाई है
गर अपने संग जीना आता हो
मन की गांठों को सुलझाना 
अपने दिल को जो भाता हो
तनहाई जब तड़पाती है
खोया खोया सा रहता हूं
लोगों के संग रहकर भी
अकेलेपन से लड़ता हूं
भटकता हूं बीती बातों में
सौगातों में आघातों में
अपनो में परायों में
बनते बिगड़ते सायों में
ग़म की लड़ियां बनती जाती 
बिखरी उम्मीदें सताती 
सब कुछ टूटा टूटा सा लगता  
जग छूटा छूटा सा लगता  
मन भटकता कहीं अंधेरों में
यादों के उन घेरों में
पर क्या सचमुच सब कुछ ऐसा है? 
जो सोचा है क्या वैसा है? 
मन के उपजे भाव हैं ये
निराशा के प्रभाव हैं ये
आशा जब अपना साथी हो
सपने जब मन को उकसाते हों
मन का रंग फिर बदलता है
जग सुहाना फिर लगता है
अपनो का संग भी भाता है
अकेलेपन, अकेला रह जाता है

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