Tuesday, August 20, 2024

उद्वेलित मन

उद्वेलित मन
राजीव 'रंजन'

विचारों की आंधियां उद्वेलित करती मन को
भावनाओं का बवंडर झकझोरता है तन को
कभी मन भटकता, स्मृतियों के गलियारों में
कभी खो जाता, सपनो के मोहक चौबारों में 
मन के अथाह सागर में उठते हर पल तूफान 
यादों के ज्वार-भाटे या फिर सपनो की उडांन
आंधियां कहां कभी किसी के बस में रहती हैं
बहती हैं, राहों से कई व्यवधान, संग ले उड़तीं हैं 
मन और आंधी को बस में करना है नहीं आसान
गीता में, अर्जुन ने प्रश्न किया, तो बोले भगवान
निश्चय ही कठिन है मन को वश में करना संजय
पर है नहीं असंभव, और नहीं इसमें कोई संशय
नित्य अभ्यास और वैराग से मिल सकता है समाधान
व्यक्ति के पास निर्णायक शक्ति, ऐसा प्राकृतिक प्रावधान 
किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु का अगर होंने न देंगे असर
अपनी सोच, और भावनाएं रखेंगे नियंत्रित और प्रखर
वर्तमान में रह, आज पर हो केद्रित विचार और व्यवहार
विवेक, प्रारब्ध, परिश्रम, और त्याग हो हमारा आचार
अपने अंदर छुपी अनंत शक्तियों पर हो भरोसा अटूट
तो मनुष्य जीवन का भरपूर आनंद ले सकता है लूट
सारी शक्तियां निहित हम सब में, नाहक हम रहते अशांत
भावना, सोच, और कर्म बदल लें , मन हो जाएगा शांत

नोएडा
16 मई 2024


अविरल

अविरल

राजीव 'रंजन' 


अविरल  जीवन  की  धारा

अनजान  हैं   इसकी   राहें

अनवरत  है   चलते  जाना

अनंत   की    फैली    बाहें 


अज्ञानता  खड़ी  मुंह  बाए

पथ  अंधकार  बनाने   को

है   बुद्धि    विवेक   सहारा

ज्योति  सर्वत्र  फैलाने   को 


यह काल  चक्र अविरल  है

अनंत से अनंत  तक  फैला

ब्रह्मांड   इसी   में    सिमटा 

रहता  है  राज  लिए  गहरा 


अविरल श्रृष्टि  के  हम  सब 

हैं क्षणिक काल की कृतियां

है   नश्वर,  सब    है    माया 

उस  कलाकार  की  वृत्तियां


क्षणभंगुर   है    यह   जीवन 

आशाओं में हर  पल  लिपटा

महत्वाकांक्षाएं   लिए  अनंत

है  अपने   आप   में   सिमटा 


सागर    की   अविरल   लहरें

ललचातीं क्षणिक  मिलन  को

कूलों    को   छू   भर   आतीं

जातीं    वो   लौट   मगन   हो 


लालिमा   क्षितिज   पर   छाई

थक   अस्त    हुआ   दिवाकर

फिर    प्रातः   पुनः   निकलना 

आशा   भर    जाता   प्रभाकर


जीवन   की   इस   बगिया   में 

उस   व्यक्ति  का   मिल  जाना

जो    स्नेह     करे     न्योछावर 

वसंत   का    ज्यों    है    आना 


है    मिलना    और    बिछड़ना

सिक्के   के    दो    बस    चेहरे

दिन    और     रात     हैं   जैसे

समय    के    राज    वो    गहरे


पाकर     वो      स्नेह     तुम्हारा 

भीगा     अंत:      मन        मेरा 

अघा      गया      हूं      तब   से 

मैं      चिर     कृतध्य    हूं    तेरा 









शिव शंकर

शिव शंकर

(राजीव 'रंजन')


हे  नीलेश्वर अलख  निरंजन   प्रतिपालक   शिव   शंकर   हे

नीलकंठ    नीलाद्री     निलोत्पल,    नागार्जुन   नागेश्वर    हे

त्रिलोकनाथ  त्रिगुणा ‌ त्रिदेव  त्रिपुरारी  त्रिनेत्र  त्रिकालेश्वर  हे

अनादि अनुपम अगम्य अव्यय अखिलेश ओम ओंकारेश्वर हे


तुम   अनंत   जग    पालनकर्ता    विश्वनाथ   सर्वेश्वर    हो

मां  गौरी  के  उमापति,  कार्तिक   गणेश  के  पिता  जो हो

"शि" से तुम अभयदानी करुणाकर  और पाप विनाशक हो

"व" में  है वह  शक्ति  निहित,  भक्तों  के  कष्ट  निवारक  हो


ब्रह्मा की उत्पत्ति   तुमसे  ,  सृष्टि  के   हो   तुम  सृजन  हार 

विष्णु   तुम   हो, पालनकर्ता, विश्व के  हो तुम  परम आधार  

समुद्र  मंथन  से उदित   हुआ  मानव  के  पापों   का   गरल

कंठागत, विनाशक विष किया, हे नीलकंठ, सहज ही सरल 


त्रिनेत्र खुला, तोड़ा  जो  ध्यान तुम्हारा, कामदेव  भश्म  हुए

महाकाल  विकराल  का  तांडव नृत्य  फिर नटराज ने किए

ध्वस्त हो रही  थी  सृष्टि, जब  देवी  मां ने तुम्हें शान्त किया

मां शक्ति के आग्रह पर, कैलाश से आ काशी में वास किया


हे शिव शंकर, शिव लिंग है द्योतक सृष्टि के सृजन शक्ति का

ध्यानमग्न रहते तुम निरंत र समपुर्ण भक्ति से उस शक्ति का 

नमन  हमारा, हे  यजामह, कल्याण   मार्ग पर  मैं चल पाऊं

पा  प्रसाद  तुम्हारा   हे  प्रभु! अखंड  ज्योति  में  समा  जाउं

Thursday, August 8, 2024

दुआ



दुआ

समंदर में मिलने  की   आस  लिए  बैठा  हूं
दरिया बन, बहने का अहसास  लिए बैठा हूं
मिल   समंदर  में, कहां   वजूद   रह  पाएगा
जब तक हूं, जीने  की  प्यास  लिए  बैठा  हूं 

शहर की  खामोशी  में  कई राज़  छुपे बैठे हैं
गरीबों  के  आंसू  और अल्फाज़  छुपे  बैठे हैं 
अमीरों ने रसूक से अपनी भर  रखी  है झोली
इख्तियार हर तरफ दबी आवाज में छुपे बैठै हैं 

मसीहा आएगा ये पता सबको जाने कब  से है 
छंटेंगे ये गम के बादल, ये हवा जाने कब  से है
रहम करो अब तो आ जाओ दुनिया के मालिक
निजात दो हमें दुखों से, ये दुआ जाने कब से है 

राजीव "रंजन"
8 अगस्त 2021

Thursday, August 1, 2024

अभिलाषा

अभिलाषा
(राजीव "रंजन")

बचपन में अभिलाषा थी चांद तारे छूने की
मन में भरी उत्सुकता थी नभ में विचरने की
आदर्शों का अंबार लिए, मन का लिए विश्वास
निकल पड़े जीवन पथ पर मन में लिए हम आस

सच्चाइयों से जब हुआ सामना, माथा गया घूम
व्यवस्थाओं की पकड़ देखी, गरीबों का हुजूम
नेताओं के वादे देखे, अफसरों की देखी अकड़
व्यापारियों की लालच देखी, पैसों की देखी पकड़

सड़कों पर बचपन देखा,   मांगते चौराहों पर भीख
औरतों की बेकद्री देखी,  समाज की खोखली सीख
धर्मो का प्रवचन देखा, बाबाओं का बढ़़ता वर्चस्व
त्यौहारों का बाजारीकरण देखा, पैसा हुआ सर्वस्व 

शिक्षा की तो बात न पूछो, व्यवस्था का हुआ सर्वनाश
परीक्षाओं में सामुहिक चोरी देखी, होते हुए देखा नाश
बेपढ़े लिखे पीएचडी धारी देखे, चोरी कर किया रिसर्च
बाज़ारों में बिकती डिग्रीयां देखी, खरीदते, कर पैसा खर्च

उत्सुकताएं अभिलाषाएं ले चले नयी राहों पर
कुछ बाधा थे कुछ कांटे थे कुछ थे अगर मगर
मन में लिए सुहाने सपने निकले अपने डगर 
बदलेंगे संसार, था, हौसला और था, लम्बा सफर

भारत का बदलता स्वरुप भी देखा प्रगति के नये आयाम
डाॅक्टर इन्जीनियर बनने का जुनून देखा, स्पर्धा का संग्राम 
दुर्व्यवस्था के बाद भी पिछड़े प्रदेशों से शिक्षा में होता नाम
देशी और विदेशी संस्थाओं में भारतीयों द्वारा उत्कृष्ट काम

एक हार के बाद, फौज का युद्धों में देखा लहराता परचम
अंतरिक्ष विज्ञान में विलक्षण प्रतिभा और बढ़ता दमखम
आईटी में अद्वितीय विकास और विश्व में स्थापित स्थान
मोबाइल का विस्तार, गरीबों का बना आधार, बढ़ता ज्ञान

वैज्ञानिक, तकनीकी शिक्षा, व रीसर्चों का बढ़ता वर्चस्व
आईआईटी और आईआईएमों का विश्व में फैलता यशस्व
भारत के व्यापारियों ने भी चुनोतियों का लिया लगाम थाम
प्रतिस्पर्धा में पीछे न रहे, गुणवत्ता में छुए नये नये आयाम

उत्कट है अभिलाषा मेरे भारत की हो प्रगति अजस्र अनल्प
विश्व में स्थापित हो पारंपरिक स्थान सम्मान पुन: इस कल्प
खुशहाल और समृद्ध हों भारत के लोग, बढ़े ज्ञान विज्ञान
वसुधैव कुटुम्बकम हो चरितार्थ, सत्य अहिंसा का हो सम्मान
















हमारे राम

हमारे राम
(राजीव 'रंजन')

मन के मेरे अंतस्तल में, हे राम! हमारे बसते हो
मर्यादाओं की लक्ष्मण रेखा में, बांध हमे जो रखते हो
होश संभाला जब से है, हर समय तुम्हारा नाम सुना
रामायण की कथाओं ने भावनाओं का सुंदर जाल बुना

हे मर्यादा पुरुषोत्तम! तुम हो हम सबके आदर्श पुरुष
भावना विवेक के सम्मिश्रण का मूर्तरुप आकार सदृश
धर्म परायण शांन्त रुप, दृढ़प्रतिज्ञ समग्र ज्ञानी स्वरुप
करुणा के सागर दयानिधान, भक्त वत्सल समदर्शी भूप

भारत के नैतिक मूल्यों का हो तुम केन्द्र सुदृढ़ और अचल
जीवन तुम्हारा, स्वयं रहा चुनौतीयों से भरा अविरल
राज्याभिषेक की थाल सजी, पाया वनवासी का वस्त्र धवल
इच्छा मां की आदेश पिता का, धरे मन में निकले राह नवल

जंगल था दुर्गम, कोमल सुकुमारी सीता और लक्ष्मण साथ 
विषम परिस्थितियों में भी भार्या और भाई ने छोड़ा न हाथ
स्नेह की हो मूर्ति, अश्रुपूरित नेत्रों से हुआ राम भरत मिलाप
केवट ने पांव धो, सबरी ने झूठे बेर खिला मिटाया संताप

प्रासादों में रहने वाले जंगल का सहर्ष सुख दुख झेल रहे थे 
 विपदा आयी, रावण ने छला, भाई जब आखेट खेल रहे थे
मां सीता का हरण हुआ, विह्वल खोजते फिरते डगर डगर 
घायल वृद्ध जटायू ने बताया, रावण ले गया उन्हें किस नगर

मित्रों के हो तुम मित्र प्रभू! सुग्रीव का तुमने उद्धार किया
ज्ञानी अज्ञानी बाली के अहंकार को कर चूर, संहार किया
आंखें खुलीं बाली की जब, पा क्षमा स्वर्ग सिधार गया
श्रापित पाषाण बनी अहल्या को भी छू तुमने तार दिया

सुग्रीव सेना प्रमुख,  हनुमान सलाहकार, थे अंगद दूत सबल
जामवंत, क्राथ, द्विविद, केसरी, मैन्ध, पनस यूथपति प्रबल
संपाति की दृष्टि, नल का ज्ञान, नील का कौशल पुल महान
औषधि कुशल वैद्य सुषेण, विभीषण मित्र तो कौन व्यवधान

लंका विजित हुई, रावण असम्मानित न हुआ, न लंका ध्वस्त
गुरु स्वरुप प्रतिस्थापित हुआ, लक्ष्मण ने पाई शिक्षा समस्त
सीता की अग्नि परीक्षा राम की थी राजनैतिक विवशता
लौट अयोध्या, सीता का वन जाना, थी राम की परवसता

राम हमारी सभ्यता के है कर्णधार, सुत्रधार और पूर्ण आधार
रोम रोम में बसते हैं, जनमानस के हैं आचार और विचार
बाह्य परिस्थितियां के विपरीत, मन से राम रहते समभावी
स्थितप्रज्ञ, क्रोध रहित, इन्द्रजीत, समदर्षी और  जगव्यापी




New York /न्यूयॉर्क

New York


New York  is  a  city  that  never  ever  sleeps 

Patience   and   fortitude   it    always   keeps 


Millions make it  their home  and earn a living

It integrates everyone and is always forgiving


It  has  something  for everyone  who  is here

Parks, museums, tours  on boats at the piers


Jobs,  businesses,  shows, exhibitions  galore

A crucible  for people  from all over and more


A  hope it  ignites, and  passions  burn bright

Creativity,  innovations,  experiments   excite


Many  a   dreams  are   made   and  ummade 

And    fortunes   won    and    lost    in    trade 


A  financial  capital  of  the world  it is called

International  institutions  have HQ sprawled 


It  is  a   fine   example  of   human  ingenuity 

Getting ahead with innovations in perpetuity 



न्यूयॉर्क 


ऊंची-ऊंची इमारतें, अट्टालिकाएं रात में जगमगातीं जैसे तारे

चोडी-चौड़ी सड़कें, पार्क, नदी का किनारा लगते कितने प्यारे 


न्यूयॉर्क की छटा है  कितनी  मनमोहक, अद्वितीय और  न्यारी

पहली नजर में रहते भौचक्के, सब लगती कितनी‌ प्यारी-प्यारी 


विश्व भर से आते लोग यहां घूमने, रहने और भाग्य आजमाने

आंखों  में  सपने  लिए  प्रगति की और अपना भविष्य  बनाने 


सभी  रहते  हर  वक्त  जल्दी  में  और दिखते  कितने मसगूल

तेज  कदमों  से करते  पार  सड़क, भीड़  के  बीच, जाते  दूर 


टाइम  स्क्वायर  की  बात  निराली, हर  ओर  है चमक दमक

खेल, तमाशा, बिल  बोर्ड, टूरगाइड और सैलानियों की चहक


सपनो का शहर, जिंदा हर पहर, समाए आकांक्षाओं की लहर

न जाने किन रस्तों से चल,  पहुंचा यहां, सहकर  कितने कहर