ईश्वर
जो है विश्व का रचयिता, पालनहार, उससे डर क्यूं
जो है सर्वज्ञ, स्थितप्रज्ञ, सर्वशक्तिमान उससे भय क्यूं
जो है व्याप्त सर्वत्र, है अनंत, फिर खोज अन्यत्र क्यूं
जो है शक्ति स्वरुप विद्यमान सबमें फिर हम लाचार क्यूं
कब वो किसी से कुछ कहता और मांगता है
कहां किसी से त्याग और बलिदान चाहता है
हरेक की मांग पर, तथास्तू सदैव कहता है
अन्त: आवाज बन, कर्म की गठरी खोलता है
प्रत्यक्ष तो आता नहीं, हरेक में सदैव बसता है
माध्यम बन, विभिन्न गुणों से सबको रचता है
कर प्रयोग उनका, देवत्व को प्राप्त हो सकता है
क्यों भटकना इधर उधर जब वो व्याप्त हममें है
ईश्वर द्योतक है प्रेम का, साहस का, भक्ति का, बल का
कहां स्थान इन सब में है भय का, चिन्ता का, डर का
पवित्र यह अनुभूति, जो, आत्मा को कर प्रकाशित
मार्ग को प्रशस्त करती, चेतना को करती प्रज्वलित
राजीव सिंह
नोएडा