Friday, June 30, 2023

काका के पिरकी - भोजपुरी कविता राजीव 'रंजन'

काका के पिरकी 

राजीव "रंजन"
२५ जनवरी २३

ट्रेन   में    खिड़की   के    लगे   रहीं   बइठल
कान   में   पिरकी   भरल   आवाज   पइठल

"तनी   कगरिआ   हमरा  पिरकी  बीगे के  बा"
ओने     तकनी     कि     बूझीं      के       बा

ऊपर के बर्थ पर से काका के मूंह रहे लटकल 
उहां  गोड़   पसार के   ऊ त पूरा रहस पसरल

बुझा   गइल    सब    मामिला   बिना   कहले
काका    बिगलन    पीक     के   धार    छुटले

केहू   हेने   कगरि आइल  केहू ओने  लुकाइल
सभकर अकिल भागा भागी  में   रहे  भुलाइल

काका के गुटुका के पीक से सब रहेला परेशान 
बाकी  अनकर तकलीफ से उ रहेलन अनजान