ज़िंदगी उदास क्यूं हो!
जिंदगी उदास क्यूं हो
दिन बेआस क्यूं हो
मंजिलें और भी हैं
चाहतें और भी हैं
मन पर बस न उसका
तन है स्वस्थ जिसका
सफ़र सिद्दत से जारी है
अनजान रस्तों की तैयारी है
अब समय है अपने लिए
आंखों में बाकी सामने लिए
छोड़ो!! जिसे जाना था गया
जिसे आना था आया
जीवन का यह खेल है
अक्सर मिलता बेमेल है
पत्ते वो देता है
खेल हम खेलते हैं
कहां बस में है अपने
बस एक सफर है
और चलते जाना है
कौतुहल लिए
राजीव 'रंजन'
05/04/25
नोएडा
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