Saturday, May 17, 2025

हनुमान अर्जुन संवाद


हनुमान अर्जुन संवाद

राजीव 'रंजन' 


लेने पूजा के फूल अर्जुन पंहुचने सुंदर उपवन में

रंग-बिरंगे  पुष्पों  को  देख, सोचा  अपने  मन  में

अपने ईश के शीश चढ़ाऊंगा मैं स्नेह भरे हृदय से

हो भाव विभोर लगे वो तोड़ने फूलों को अभय से


कड़कती आवाज आई तब किसी की कहीं पीछे से

मुड़कर देखा बैठा था इक बूढ़ा बंदर आंखें मीचे से

मूर्ख बिना आज्ञा तोड़ता है फूल बता तू किस प्रयोजन

अपने ईश की पूजा हेतु तोड़ रहा हूं ये फूल हे सज्जन


अहा!! अपने चोर देव को चोरी के ही तो फूल चढ़ाएगा

धर्म और अधर्म की परिभाषा कहां मूर्ख तू समझ पाएगा

भड़क उठी क्रोधाघ्नि अर्जुन की बोले व्यंग वो कातर

जाकर पूछो अपने पूज्य से बंदरों से बनवाया पुल क्योंकर


होता कौशल उनके धनुष में जो क्षण में पुल बन जाता

नाहक बेचारे बंदरों को इस कठिन कार्य में न जुतवाता

है इतना कौशल तेरे में तो चल बना एक पुल और दिखला

छोड़ सेना को, देखूं मेरा ही भार वहन कर सकता है क्या


हां मैं बना दूंगा और न बना, तो यहीं जलूंगा चिता पर

क्षत्रिय का यह वचन अटल है बोला अर्जुन गरज‌ कर‌

वाणों की अद्भुत वर्षा की, लगा पुल‌ अपना स्वरुप धरने

देखते देखते आंखों के समक्ष एक बड़ा पुल लगा पसरने 


हनुमान मुस्कुराए, हो खड़े लगे फैलाने बदन गगन में

अर्जुन घबराए, और किया याद प्रभु को हो मगन वे

हनुमान के पग धरते ही पुल गया चरमरा कर टूट

अर्जुन हतप्रध ताक रहे थे जैसे भाग्य गया हो रुठ


क्षत्रिय वचन रखने को पार्थ हो गए मरने को तैयार

हनुमान ने समझाया अमूल्य जीवन यूं गंवाना है बेकार

पर कुंती पुत्र कुल की मर्यादा पर वचन से रहे अटल

हनुमान ने प्रभु से समाधान का किया आग्रह उसी पल


ब्राह्मण भेष में आए कृष्ण और पूछा समस्या क्या है

बातें सुनकर बोले, क्या‌ किसी और ने यह सब देखा है

नहीं देव! हम दोनों के सिवाय नहीं था यहां कोई भी

फिर प्रमाणित कैसे करोगे जग को ऐसा कुछ हुआ भी


पुनः बनाओ पुल दूजा, मैं भी देखूं क्या है यह संभव

अर्जुन लगे बनाने पुल को झोंक अपना सारा‌ विभव

हनुमान ‌ने पुन: पैर धरा जो, डिगा न पुल तनिक भर 

देखा,अदृश्य प्रभु ने, कुर्म रुप में, थाम रखा था झुक कर


अर्जुन ने समझ लिया आज फिर प्रभु ने लाज बचा ली 

हाथ जोड़ कर हनुमान खड़े थे, बोले, मांगो वर अभी ही

आज नहीं समय आने पर अपना समुचित वर मांगूंगा

महाभारत युद्ध में देंगे जो हमारा साथ तब ही जानूंगा


कर प्रणाम प्रभु को, हनुमान ने अर्जुन को दिया वचन

पर शस्त्र नहीं थामूंगा युद्ध में रहूंगा साथ हो पूर्ण मगन

युद्ध में निरंतर ही रहे हनुमान रथ के मस्तक पर सवार

युद्ध घोष से गिराते कौरवों का मनोबल मचा हाहाकार


अस्त्रों के प्रहार से तनिक भी न डिगता था रथ नंदी घोष

विपक्षियों के रथों पर अर्जुन के बाणों का पूरा गिरा रोष

ध्वस्त हुए कई, कई दूर जा गिरे अस्त व्यस्त छटक कर

अर्जुन का रथ न डिगा तनिक भी शत्रु रहे सर पटक कर


महायुद्ध हुआ समाप्त सेनाएं थीं बिखरी सर्वत्र अस्त व्यस्त

कृष्ण ने अर्जुन से रथ से उतरने को कहा हो पूर्ण आस्वस्त

अर्जुन ने हाथ जोड़ प्रभु से पहले उतरने का किया आग्रह

सारथी ने सर्व प्रथम अर्जुन को उतारा कर समुचित दुराग्रह


उतरे जब कृष्ण नंदी धोष से, रथ लगा जलने धू धू कर

किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन लगे रथ को तकने आश्चर्य कर

प्रभु ने तब समझाया हनुमान के प्रताप की ही थी महिमा

अर्जुन का सर झुका चरण में गाते उनकी मन में गरिमा

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