ख्वाहिशें
रुह ने जब पहना जिस्म का जामा
साथ आईं ख्वाहिशें खरामा खरामा
ख्वाहिशें कहां कभी होती हैं पूरी
जिंदगी भर तड़पा कर भी रहतीं हैं अधूरी
हम आधे अधूरे ख्वाब लिए फिरते हैं
दिल में चाहतों की सौगात लिए फिरते हैं
यूं ही ज़िंदगी में सौगात कहां मिलते हैं
बगैर मेहनत बागों में फूल कहां खिलते हैं
बेलगाम बेहिसाब ख्वाहिशें गम का हैं सबब
इन्हें वस में रखने की हिम्मत दे हमें यारब
राजीव 'रंजन'
नोएडा
04 मार्च 2025
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