Monday, August 25, 2025

सब धरे के धरे रह गए

सब धरे के धरे रह गए 

राजीव “रंजन”


वो आंधी  की तरह आया, 

तूफ़ान की तरह निकल गया 

हम खिड़की खोले 

बयार का इंतज़ार करते रह गए 


ज़िन्दगी ना जाने कब 

बालू की तरह उंगलियों के बीच 

धीरे धीरे फिसल गई 

पाँवों में गुदगुदी का इंतज़ार करते रह गए 


बड़ी मशक्कत की 

तब कहीं काम मिला 

पेशे और घर के जद्दो जहद में 

जीवन के आनंद का इंतज़ार करते रह गए 


बच्चे पैदा हुए 

पले, पढ़े, बड़े हुए 

अपनी अपनी मंजिल चल दिए 

अब हम उनका घर पर राह तकते रह गए 


उम्र के इस पड़ाव पर 

पहली बार सेहत, समय और साधनों का

आनंद उठाने का मौक़ा है 

क्यों भरे रहें यादों और चिंताओं से 

क्यूं डरें अनहोनी से 

जो होगा, जब होगा, देखा जाएगा 

जी लेने दो हमे अपने लिए 

वरना सब कहेंगे 

देखो वो चला गया, सब धरे के धरे रह गए 

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