Friday, August 8, 2025

हे सखे !! एक आग्रह!!!

हे सखे!! एक आग्रह!!!

हे सखे! मेरे प्रणय प्रतीक!!

मेरे जीवन के प्रज्वलित दीप

तुम उठो, जब मैं गिरुं

हो सबल,

मेरे संगीत के सुरों को

बिखरे पड़े हैं जो

नए सुरों में पिरो दो

नई रागिनी

नए धुन बना दो

तुम तो स्वयं हो वीणा की तान

अपने कला की प्रखर पहचान

मेरा हृदय आस्वस्त हो

कि जब मैं दूर नए लक्ष्य

की खोज में निकलूं

तो तुम हो निर्भीक खड़ी

स्वयंसिद्धा समान

जीवन के नवल पथ पर

नवल रस भर

नवल लक्ष्य धर

अग्रसर......

सहृदय.. सक्षम... प्रबल.... अविरल.....

राजीव 'रंजन'

नोएडा

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