Saturday, May 24, 2025
My Wish
सही राह
सही राह
भारतवर्ष का संविधान ही मिटा सकता है सारे व्यवधान
सदियों बंटे रहे, विदेशियों ने पहनाया परतंत्रता का परिधान
धीरे-धीरे व्यवस्थाएं और समाज बदले, निकल रहा समाधान
सदियों की समस्याएं सुलझती नहीं, कर महज व्याख्यान
हर कोई संविधान छोड़ बना रहा न जाने कौन सा हिंदुस्तान
लक्ष्य पर निगाह कदम धीरे-धीरे लिए मंजिल का अरमान
समस्याओं को नियम कानून से सुलझाए हमारा संविधान
जहर भर गया जब सांसों में, कहां फिर एकता का अनुष्ठान
पृथक-पृथक आवाजों ने हिंसा का लिया सहारा देश लहुलुहान
दुश्मन खड़ा सीमा पर करता आतंकी हमलों का इमकान
युद्ध भेरियां बज चुकीं आतंकियों को पहुंचाना होगा श्मशान
भारत के लाल उठो, रण की अब तैयारी में दो अपना योगदान
Thursday, May 22, 2025
Utopia
Utopia
Rajiv Ranjan
Utopia exists, but in our minds
We imagine heaven and hell
Escape our present existence
And in the imaginary world dwell
Competition is integral to survival
What comes must go Someday
Survival of the fittest is the law
That is the way nature eases away
We inhabit an impermanent universe
And nature looks flawed to us all
Its logic we can't still fathom
There is surely a divinity in every fall
The Truth we all try to eternally unravel
Science adopts reason and logic
Religion takes a path more complex
Stories, symbols, rituals and even magic
Saturday, May 17, 2025
हनुमान अर्जुन संवाद
हनुमान अर्जुन संवाद
राजीव 'रंजन'
लेने पूजा के फूल अर्जुन पंहुचने सुंदर उपवन में
रंग-बिरंगे पुष्पों को देख, सोचा अपने मन में
अपने ईश के शीश चढ़ाऊंगा मैं स्नेह भरे हृदय से
हो भाव विभोर लगे वो तोड़ने फूलों को अभय से
कड़कती आवाज आई तब किसी की कहीं पीछे से
मुड़कर देखा बैठा था इक बूढ़ा बंदर आंखें मीचे से
मूर्ख बिना आज्ञा तोड़ता है फूल बता तू किस प्रयोजन
अपने ईश की पूजा हेतु तोड़ रहा हूं ये फूल हे सज्जन
अहा!! अपने चोर देव को चोरी के ही तो फूल चढ़ाएगा
धर्म और अधर्म की परिभाषा कहां मूर्ख तू समझ पाएगा
भड़क उठी क्रोधाघ्नि अर्जुन की बोले व्यंग वो कातर
जाकर पूछो अपने पूज्य से बंदरों से बनवाया पुल क्योंकर
होता कौशल उनके धनुष में जो क्षण में पुल बन जाता
नाहक बेचारे बंदरों को इस कठिन कार्य में न जुतवाता
है इतना कौशल तेरे में तो चल बना एक पुल और दिखला
छोड़ सेना को, देखूं मेरा ही भार वहन कर सकता है क्या
हां मैं बना दूंगा और न बना, तो यहीं जलूंगा चिता पर
क्षत्रिय का यह वचन अटल है बोला अर्जुन गरज कर
वाणों की अद्भुत वर्षा की, लगा पुल अपना स्वरुप धरने
देखते देखते आंखों के समक्ष एक बड़ा पुल लगा पसरने
हनुमान मुस्कुराए, हो खड़े लगे फैलाने बदन गगन में
अर्जुन घबराए, और किया याद प्रभु को हो मगन वे
हनुमान के पग धरते ही पुल गया चरमरा कर टूट
अर्जुन हतप्रध ताक रहे थे जैसे भाग्य गया हो रुठ
क्षत्रिय वचन रखने को पार्थ हो गए मरने को तैयार
हनुमान ने समझाया अमूल्य जीवन यूं गंवाना है बेकार
पर कुंती पुत्र कुल की मर्यादा पर वचन से रहे अटल
हनुमान ने प्रभु से समाधान का किया आग्रह उसी पल
ब्राह्मण भेष में आए कृष्ण और पूछा समस्या क्या है
बातें सुनकर बोले, क्या किसी और ने यह सब देखा है
नहीं देव! हम दोनों के सिवाय नहीं था यहां कोई भी
फिर प्रमाणित कैसे करोगे जग को ऐसा कुछ हुआ भी
पुनः बनाओ पुल दूजा, मैं भी देखूं क्या है यह संभव
अर्जुन लगे बनाने पुल को झोंक अपना सारा विभव
हनुमान ने पुन: पैर धरा जो, डिगा न पुल तनिक भर
देखा,अदृश्य प्रभु ने, कुर्म रुप में, थाम रखा था झुक कर
अर्जुन ने समझ लिया आज फिर प्रभु ने लाज बचा ली
हाथ जोड़ कर हनुमान खड़े थे, बोले, मांगो वर अभी ही
आज नहीं समय आने पर अपना समुचित वर मांगूंगा
महाभारत युद्ध में देंगे जो हमारा साथ तब ही जानूंगा
कर प्रणाम प्रभु को, हनुमान ने अर्जुन को दिया वचन
पर शस्त्र नहीं थामूंगा युद्ध में रहूंगा साथ हो पूर्ण मगन
युद्ध में निरंतर ही रहे हनुमान रथ के मस्तक पर सवार
युद्ध घोष से गिराते कौरवों का मनोबल मचा हाहाकार
अस्त्रों के प्रहार से तनिक भी न डिगता था रथ नंदी घोष
विपक्षियों के रथों पर अर्जुन के बाणों का पूरा गिरा रोष
ध्वस्त हुए कई, कई दूर जा गिरे अस्त व्यस्त छटक कर
अर्जुन का रथ न डिगा तनिक भी शत्रु रहे सर पटक कर
महायुद्ध हुआ समाप्त सेनाएं थीं बिखरी सर्वत्र अस्त व्यस्त
कृष्ण ने अर्जुन से रथ से उतरने को कहा हो पूर्ण आस्वस्त
अर्जुन ने हाथ जोड़ प्रभु से पहले उतरने का किया आग्रह
सारथी ने सर्व प्रथम अर्जुन को उतारा कर समुचित दुराग्रह
उतरे जब कृष्ण नंदी धोष से, रथ लगा जलने धू धू कर
किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन लगे रथ को तकने आश्चर्य कर
प्रभु ने तब समझाया हनुमान के प्रताप की ही थी महिमा
अर्जुन का सर झुका चरण में गाते उनकी मन में गरिमा